छत्तीसगढ़

जिससे आंतरिक वृत्तियां सुधरेगी वही वास्तविक तप : मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी

Listen to this article

रायपुर । श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर रायपुर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचन माला जारी है। गुरुवार को महामंगलकारी शाश्वत ओलीजी की आराधना का नौवां दिन रहा। अंतिम दिन तप की आराधना की गई। तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि अरिहंत पद में जितनी कोमलता है उससे ज्यादा कठोर तप पद है। उपवास बाहरी तप है। जिससे हमारी आंतरिक वृत्तियां सुधरेगी वही वास्तविक तप है। अपनी भूख से कम खाना भी तप है, जहां-जहां आपकी इच्छा हो उसको अटका देना भी तप है,बिना आहार के रहना अनशन तप है। मुनिश्री ने कहा कि तप शब्द हमारे विचार में आता है तो लगता है जो उपवास कर रहा वह तपस्वी है,एकासना,बयासना कर रहा वह तपस्वी है।

हमने तप के क्षेत्र को बहुत संक्षिप्त कर दिया है लेकिन तप का क्षेत्र विशाल है। तप के क्षेत्र में बहुत बारीकी से देखोगे तो आपको लगेगा बिना उपवास,आयंबिल किए तप तीनों पक्षों के अंदर होता है। काया पक्ष, वचन पक्ष और मन पक्ष में भी होता है। काया पक्ष में तप प्रत्यक्ष दिखता है जिसमें हम किसी  तिथि या अवसर अनुसार उपवास करते हैं। जिसे  आप त्याग करते हैं वह सारा का सारा तप ही है। वचन के स्तर पर अर्थात किसी को कुछ अपशब्द मत बोलो चाहे कैसी भी विकट परिस्थिति आ जाए कटु मत बोलो, इसे कंट्रोल करना भी एक प्रकार का तप है।

मुनिश्री ने कहा कि तप पद की आराधना व्यक्ति अपने क्लिष्ट कर्मों को तोड़ने के लिए करता है। कर्म सत्ता जब क्रूर हो जाती है,जब कर्मों का बोझ बढ़ जाता है,तब जीव को समझ आता है की छोटी-छोटी आराधना से कुछ नहीं होगा,अब तप ही करना होगा। तप के 12 भेद बताए गए हैं। मुख्य दो भेद होते हैं बाह्य और अभ्यंतर तप। तप का क्षेत्र संक्षिप्त नहीं विशाल है। अपनी इच्छा के अनुसार आप कितना भी उपवास,आयंबिल कर लो, आप तपस्वी नहीं कहलाओगे,ये बाह्य तप है। आंतरिक रूप से वृत्तियां को सुधारना ही वास्तविक रूप से तप की आराधना है।

Markandey Mishra

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close