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कोरबा – पूर्व राजस्व मंत्री के कर्म का भुगतान आज तक कोरबा की जनता को भोगना पड़ रहा है। तत्कालीन मंत्री जयसिंह ने कलेक्टर पर दबाव बनाकर शहर की सड़कों को बनाने के लिए 10 करोड़ से अधिक की राशि डीएमएफ से निगम को जारी करा दी निगम में अपने पोपेट महापौर के जरिये अपने चहेते ठेकेदारों को काम दिला दिया और खराब सड़को को छोड़ बेहतर सड़क को बनवाने का ढोंग शुरू कर दिया। दावा किया गया कि शहर की सड़कें चमचमा जाएगी ऐसा हुआ भी लेकिन केवल 2 दिनों के लिए दो में ही सड़कों ने दम तोड़ना शुरू कर दिया। जिस गिट्टी के चूरे को डामर की चटनी चटाई गई थी वो चटनी चट होते ही डामर की कथित मजबूत सड़क बजरी बन धूल और दुर्घटना का कारण बनने लगे। जब नगर सरकार में विपक्ष में बैठी भाजपा ने हंगामा किया तो फिर से सड़क सुधारी नहीं गई बल्कि बजरी बन गई गिट्टी के ऊपर डामर का छिड़काव किया गया। ये सब कारनामा हो रहा था प्रदेश के सबसे ईमानदार निगम के अधिकारियों के देखरेख में, इंजीनियर की मेजरमेंट बुक और जांच रिपोर्ट साफ कहती है कि सड़क गुणवक्ता युक्त थी जब इतनी ही गुणवक्ता थी तो फिर 3 साल से लोग इस बेहतरीन सड़क पर गिट्टी का डस्ट खाते क्यों घूम रहे है और डामर का साथ छोड़ चुकी गिट्टी में फिसलकर घायल क्यों हो रहे है।

तानसेन चौक से घंटाघर चौक, घंटाघर चौक से सीएसईबी चौक, रिकांगों (बुधवारी बाईपास) रोड़, सीएसईबी चौक से मेन रोड और पावर हाउस से सीतामणी तक के इलाकों में किए गए सड़क डामरीकरण कार्य पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं। यह स्थिति निगम अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाती है। कलेक्टर साहब अब आप ही आपके अध्यक्षता वाली डीएमएफ के फंड के दुरुपयोग को लेकर दिशानिर्देश जारी कर कोरबा के लोगो की जान बचा सकते है।

निगम अधिकारियों की जिम्मेदारी पर सवाल

सड़क निर्माण के इन कार्यों में कई ठेकेदारों ने भाग लिया था, और अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या निगम अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया प्राकलन सही था या नहीं। जब एक ठेकेदार द्वारा किए गए काम में खराबी आती है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है। लेकिन जब पूरा शहर इस स्थिति में पहुंच जाए, तो यह निगम के अधिकारियों की जिम्मेदारी और उनके प्राकलन की गुणवत्ता पर सीधा सवाल उठाता है। क्या निगम अधिकारियों ने शहर की मुख्य सड़कों के अनुरूप प्राकलन तैयार किया था या नहीं?

सड़क निर्माण में मानकों की अनदेखी

सड़क निर्माण के दौरान, निगम के अभियंता डामर प्लांट से लेकर सड़क निर्माण स्थल तक की निगरानी करते हैं। वे डामर की गुणवत्ता की जांच करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि निर्माण कार्य मानकों के अनुरूप हो। यदि सड़कों में खामियां आ रही हैं, तो इसका मतलब है कि मानकों की अनदेखी की गई है। डामर प्लांट से गाड़ियों का तापमान जांचने से लेकर पैवर मशीन से डामर का नापी तक सभी कार्यों की निगरानी अभियंताओं द्वारा की जाती है। फिर भी, यदि सड़कों की गुणवत्ता में कमी है, तो यह निगम अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है।

ठेकेदारों पर आरोप और भ्रष्टाचार

हाल ही में, निगम अधिकारियों ने एक ठेकेदार की राशि अवैधानिक तरीके से राजसात कर दी है, जबकि नियमानुसार उस ठेकेदार की सड़क रखरखाव की अवधि समाप्त हो चुकी थी। इस मुद्दे पर ठेकेदार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, और निगम आयुक्त को मुख्य न्यायाधीश द्वारा नोटिस जारी किया गया है। यह स्थिति निगम की भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को उजागर करती है।

नगर निगम की भ्रष्टाचार की परतें

कोरबा नगर निगम की कार्यशैली में भ्रष्टाचार की गंध स्पष्ट रूप से महसूस हो रही है। अधिकारियों द्वारा गुणवत्ताहीन काम कराए जाने के आरोप हैं, जिससे उनकी जेबें भरी जा रही हैं और जनता की गाढ़ी कमाई का बंदरबांट किया जा रहा है। प्राकलन में हेरफेर कर ठेकेदारों पर फर्जी आरोप लगाए जाते हैं ताकि अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच सकें। हाल ही में एसीबी द्वारा की गई कार्रवाई में निगम के दो अभियंता जेल में हैं। इसके अलावा, पिछले महीने निगम ने बिना वजह तीन ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट किया, और अगले ही दिन दो ठेकेदारों के नाम ब्लैकलिस्ट से हटा दिए।

सूचना का अधिकार और अवैध कार्यप्रणाली

सूचना के अधिकार के प्रथम अपीलीय अधिकारी एम.के. वर्मा द्वारा कई बार जानकारी देने में विफल रहने की घटनाएं भी सामने आई हैं। यह निगम की अवैध कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार की गहराई को दर्शाती है।

 

अब यह देखना होगा कि निगम अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया प्राकलन सही था या शहर के ठेकेदारों ने जानबूझकर काम खराब किया है। नगर निगम की वर्तमान स्थिति और भ्रष्टाचार की गहराई से यह स्पष्ट हो रहा है कि कोरबा के नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण सेवाओं का भरोसा और उन्हें भ्रष्टाचार से राहत देने की आवश्यकता है।

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