सुकमा । कृषि विज्ञान केन्द्र, सुकमा के पौध रोग वैज्ञानिक राजेन्द्र प्रसाद कश्यप, कीट वैज्ञानिक डॉ योगेश कुमार सिदार व चिराग परियोजना के एस.आर.एफ. यामलेशवर भोयर ने धान में लगने वाले झुलसा रोग के बारे में जिले के किसानों को जानकारी दी, कि इस रोग को जीवाणु जनित झुलसा रोग या बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग भी कहते हैं। यह रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते है। पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह बीमारी कभी भी लग सकती है।
इस रोग में पत्तिया नोंक अथवा किनारों से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं झुलसे हुये दिखाई देते हैं। इन सूखे हुये पीले पत्तों के साथ-साथ राख के रंग के चकत्ते भी दिखाई देते हैं। संक्रमण की उग्र उवस्था में पत्ती सूख जाती है। रोग ग्रसित पौधे कमजोर हो जाते है और उनमें कंसा कम निकलता है। दाने पूरी तरह नही भरता है व पैदावार कम हो जाती है। संक्रमित पत्तियों को काट कर पानी से भरे काँच के गिलास में डुबाने से पत्तियों में तरल जैसे पदार्थ (ऊज) निकलता है जिससे सुनिश्चित हो जाता है कि यह जीवाणु जनित रोग है।
इसके नियंत्रण के लिए प्रभावी उपाय अपनाना चाहिए जिसमें खेतो को खरपतवार मुक्त रखे व पुराने फसल अवशेष को नष्ट कर दे। प्रमाणित बीजों का चयन करें।
समय पर बुवाई करें व रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें। झुलसा रोग के प्रकोप की स्थिति में नाइट्रोजन उवर्रक का प्रयोग न करें। धान में जीवाणु जनित झुलसा रोग के लक्षण दिखने पर यदि पानी उपलब्ध हो तो खेत से अनावश्यक पानी निकालकर 3 से 4 दिन तक खुला रखें तथा 25 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर कि दर से छिड़काव करें। कोई रासायनिक उपचार इस बिमारी के लिए प्रभावकारी नहीं है अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको व कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करें।