वनोपज बेचने के बाद मिले पैसों से ग्रामीण सड़क बना रहे
बीजापुर (ग्रामयात्रा छत्तीसगढ़ )। छत्तीसगढ़ सरकार इन दिनों पूरे प्रदेश में सुशासन तिहार मना रही है, लेकिन बीजापुर जिले के सुदूर गांव सुराखेड़ा के ग्रामीण इस “सुशासन” की हकीकत को खुद अनुभव कर रहे हैं। भैरमगढ़ ब्लॉक के ग्राम पंचायत केसकुतुल के आश्रित गांव सुराखेड़ा के लोगों ने आठ किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए जब बार-बार प्रशासन और सरकार से गुहार लगाई और कोई सुनवाई नहीं हुई, तो 66 परिवारों ने मिलकर वनोपज बेचकर सड़क निर्माण शुरू कर दिया।
टोरा, महुआ, इमली बेचकर जुटाए पैसे, अब खुद बना रहे सड़क
ग्रामीणों ने बताया कि हर परिवार ने टोरा, महुआ, इमली और आंवला जैसे वनोपज बेचकर करीब 1200-1200 रुपये का योगदान किया है। इस तरह जुटाई गई रकम से लगभग आठ किलोमीटर की सड़क का निर्माण शुरू किया गया है। प्रशासन से कई बार पत्राचार और अपीलों के बाद भी कोई मदद नहीं मिली, जिससे गांववालों ने खुद ही सड़क निर्माण की जिम्मेदारी उठा ली।
जनप्रतिनिधि बोले – सरकार को आम जनता से कोई सरोकार नहीं
जिला पंचायत सदस्य लछुराम मोडियामि ने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण ग्रामीणों को अपने वनोपज बेचकर सड़क निर्माण करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि सरकार को आम नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है।”
उप सरपंच बलिराम बेंजाम ने कहा कि “हमने सुशासन तिहार के दौरान भी अपनी मांग उठाई, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। आखिरकार हमें ही सड़क निर्माण की जिम्मेदारी उठानी पड़ी।”
मनरेगा से सिर्फ मिट्टी का काम, मुरमीकरण नहीं – C.E.O.
जनपद पंचायत भैरमगढ़ के सीईओ पीआर साहू ने कहा कि ग्रामीणों ने सुशासन तिहार के दौरान सड़क की मांग रखी थी, लेकिन मनरेगा योजना में मुरमीकरण का प्रावधान नहीं है। उन्होंने बताया कि मार्ग पथरीला है और चट्टानी होने के कारण मिट्टी कार्य भी मुश्किल है, इसलिए योजना में रुचि नहीं दिखाई गई।
सुशासन तिहार की हकीकत
सरकार जहां एक ओर “सुशासन तिहार” के नाम पर प्रचार में लगी है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अपने वनोपज बेचकर मूलभूत सुविधा – सड़क – के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि छत्तीसगढ़ के दूरदराज़ के गांव अब अपनी लड़ाई खुद लड़ने पर मजबूर हैं।