छत्तीसगढ़

ओबीसी आरक्षण मामला, हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण के लिए सरकार पक्ष रखेगी- मुख्यमंत्री

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रायपुर। ओबीसी आरक्षण मसले के विरोध में लगाई गई याचिका पर बीते एक अक्टूबर को सुरक्षित रखे गए आदेश को सार्वजनिक करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण का कोटा 14 प्रतिशत किए जाने के अध्यादेश को स्टे कर दिया है।
राज्य सरकार ने बीते चार सितंबर को छत्तीसगढ लोकसेवा संशोधन अध्यादेश जारी कर ओबीसी के लिए पहले तय मानक 14 प्रतिशत को बढ़ा कर 27 फ़ीसदी किया गया था। इसी अध्यादेश में दस प्रतिशत आरक्षण आर्थिक आधार पर भी दिए जाने का उल्लेख था।
हाईकोर्ट में इस अध्यादेश के विरोध में कुल 11 याचिकाएँ दायर की गई थीं। हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस पी आर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी पी साहू की संयुक्त बेंच ने इन्हें एक साथ लिस्ट कर दिया और इसकी सुनवाई की।
इन याचिकाओं में एक याचिका आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के विरोध में भी दायर थी।हाईकोर्ट का स्टे केवल ओबीसी के अरक्षण वृद्धि पर प्रभावी है।
ओबीसी आरक्षण वृद्धि के विरोध में लगाई याचिकाओं में से एक याचिका कर्ता के अधिवक्ता निशिकांत सिन्हा ने बताया
हमने यह कहा था कि राज्य ने जाति के वास्तविक आँकड़ो के बगैर आरक्षण लागू किया। साथ ही यह प्रश्न भी था कि, जब राज्य के पास पिछडा वर्ग समिति है, जो डाटा कलेक्ट करती है और पिछड़े वर्ग की देख रेख सुनिश्चित करती है तो उसकी अनुशंसा कहीं दर्ज ही नही थी।उसकी अनुशंसा के बगैर अध्यादेश लाया गया।
राज्य की ओर से अध्यादेश के समर्थन में 1980 के महाजन कमेटी को आधार बताया गया।साथ ही नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन और आरबीआई के आँकड़े दिए गए थे, जो पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 45.5 प्रतिशत बताते हैं।
इधर इस अंतरिम आदेश के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धमतरी में मीडिया से कहा न्यायालय ने 69 प्रतिशत आरक्षण स्वीकार लिया है। याने एससी और आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के आरक्षण को स्वीकार लिया है। ओबीसी के आरक्षण को स्वीकार नही किया गया है। जिसको लेकर हम अपनी लडाई लड़ेंगे। न्यायालय में अपना पक्ष रखेंगे।
याचिकाकर्ताओं में से एक रायपुर के सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने कहा यह अध्यादेश संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ था, पचास प्रतिशत से उपर आरक्षण लागू नही किया जा सकता था, और आँकड़ो को लेकर प्रश्न तो है ही।

Markandey Mishra

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