छत्तीसगढ़

मुमुक्षु रत्न नीलेश भाई महेता 23 नवंबर को रायपुर के जैन दादाबाड़ी में लेंगे दीक्षा

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रायपुर । भाठागांव स्थित वालफोर्ट सिटी में बुधवार को दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनिजी से मुमुक्षु रत्न नीलेश भाई महेता ने मुनिश्री से दीक्षा मुहूर्त प्रदान करने का अनुरोध किया। जिसे स्वीकार करते हुए मुनिश्री ने रायपुर की पुण्य धरा पर मुमुक्षु नीलेश भाई महेता को इसी वर्ष के 23 नवंबर को दीक्षा प्रदान करने की शुभ करने के शुभ मुहूर्त की घोषणा की।

रायपुर के जैन दादाबाड़ी में मुमुक्षु नीलेश भाई महेता 23 नवंबर 2024 के दिन दीक्षा लेंगे, वे सांसारिक जीवन का त्याग करते हुए और वैराग्य जीवन में प्रवेश करेंगे। दीक्षा मुहूर्त प्रदान करने के पश्चात वॉलफोर्ट सिटी में संगीतमयी कार्यक्रम के साथ उनका वंदन किया गया। उनके परिजनों और दोस्तों के लिए यह पल बहुत ही भावुक रहा।

संसार में हमारा कोई दुश्मन नहीं, राग-द्वेष, लालच और ईर्ष्या जैसे शत्रु हमारे अंदर ही है: विरागमुनिजी

जिनवाणी की वर्षा के क्रम में दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनिजी ने बुधवार को भाठागांव के वालफोर्ट सिटी में प्रवचन किया। यहां बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचन का लाभ लिया। प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि आज हम आध्यात्मिक विकास के लिए पुरूषार्थ नहीं कर पा रहे है। हमें आध्यात्म की ओर ले जाने वाला कल्याण मित्र नहीं मिल रहा है। वैसे भी कल्याण मित्र हमें मिलेगा कैसे, हम तो बाहर की दुनिया में सुख ढूंढ रहे है।

हमें वह अपने अंदर ढूंढना है और पाप रूपी कचरे को अपनी आत्मा से बाहर करना है। हम अपने शत्रु को बाहर खोज रहे है जबकि वह हमारे अंदर ही है। राग, द्वेष, काम, वासना, लालच, ईर्ष्या जैसे भावनाओं को हमने पाल रखा है, उसे ही ढूंढ कर हमें बाहर निकालना है। इस सांसारिक दुनिया में कोई हमारा शत्रु नहीं है, हमें केवल एक बार अपने अंदर झांकना है और अंदर के शत्रु को खत्म करना है फिर आप देखिए कि जीवन कैसे आनंद से भर जाएगा।

उन्होंने आगे कहा कि आज भाग्य को हमने पुण्य के भरोसे छोड़ दिया है, हम पुरूषार्थ नहीं कर पा रहे है। जबकि हमें अपने परिणामों में बदलाव लाना है। कुछ लोग केवल धर्म के भरोसे रहते है और बिल्कुल भी पुरूषार्थ नहीं करते। इतना भी पुरूषार्थ नहीं करना है कि काम करते-करते आपका ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल बढ़ जाए, इतना टेंशन नहीं लेना है। आप अपने स्टाफ को ही देख लीजिए, कितने आनंदित रहते है।

दुकान में बैठे रहते है और यह सोचते है कि ग्राहक इतने आ जाए कि अपनी पगार निकल जाए और थोड़ा दुकान का खर्च ताकि अपने को भी टेंशन नहीं और न ही मालिक को टेंशन। जबकि आपको टेंशन रहता है कि ग्राहकों की संख्या कैसे बढ़ाई जाए, ऐसी क्या स्कीम लगाई जाए जो ग्राहक रातोंरात दोगुने हो जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एंगल अलग-अलग है। वैसे ही आपको धर्म के प्रति रहना है और अपनी सोच को क्लियर रखना है।

Markandey Mishra

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