सुकमा। कृषि विज्ञान केन्द्र सुकमा के पौध रोग वैज्ञानिक राजेन्द्र प्रसाद कश्यप, कीट वैज्ञानिक डॉ. योगेश कुमार सिदार तथा चिराग परियोजना के एस.आर. एफ. यामलेशवर भोयर ने बताया कि वर्तमान में जिले के मुरतोणडा, पेरमापारा, नीलावरम, तोगपाल, सोनाकुकानार,नयानार, रामपुरम का मैदानी भ्रमण के दौरान धान के खेत मे पत्ती मोड़क कीट का आक्रमण दिखाई दिया है। इसे पत्ति लपेटक या चितरी या सोरटी कहा जाता है।
इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती है। इस कीट की इल्ली अपने लार द्वारा पत्ती की नोंक को या पत्तियों के दोनों सिरो को चिपका लेती है। इस तरह इल्ली इसके अंदर रहकर पत्तियों के हरे भाग (क्लोरोफिल) को खुरच खुरच कर खा जाती है, जिसके कारण पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती है, जिसकी वजह से पत्तियों मे भोजन बनाने की प्रकिया नहीं हो पाती है। कीट द्वारा ग्रसित पत्तियाँ बाद में सुखकर मुरझा जाती हैं व फसल की बढवार भी रूक जाती हैं, इसके नियंत्रण के लिए प्रभावी उपाय अपनाना चाहिए। जिनमें खेतो व मेड़ो को खरपतवार मुक्त रखें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें। खेतों मे चिडियो के बैठने के लिए टी आकार की पक्षी मीनार लगाए।
रात्रि चर कीट को पकड़ने के लिए प्रकाश प्रंपच या लाइट ट्रैप खेतो मे लगाए।अण्डे या इल्ली दिखाई देने पर उसे इकट्ठा करके नष्ट करें। कीट से प्रभावित खेतो में रस्सी चलाएं।बारिश रुकने व मौसम खुला होने पर कोई एक कीटनाशक का स्प्रै काराये।क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 1250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या कर्टाफ हाइड्रोक्लोराइड 50: एस.पी. 1000 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरेटानिलिप्रोएल 18.5ः एस.सी. 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या इंडोक्साकार्ब 15.80 प्रतिशत ई.सी.200 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का उपयोग करके प्रभावी नियंत्रण कर सकते हैं, ठीक न होने पर 15 दिन बाद दूसरे कीटनाशक का छिडकाव करें शामिल है और अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करके ही रासायनिक दवाइयों का उपयोग करें।