बालको के लिए कोरबा बना ‘लोडिंग स्टेशन’, जनता के लिए यातना केंद्र! कोयला हो या एलुमिना पाउडर – बालको की गाड़ियों के लिए नियम खत्म, शहर की थम जाती है सांसें

बालको के लिए कोरबा बना ‘लोडिंग स्टेशन’, जनता के लिए यातना केंद्र!
कोयला हो या एलुमिना पाउडर – बालको की गाड़ियों के लिए नियम खत्म, शहर की थम जाती है सांसें
कोरबा | बालको संयंत्र की भूख अब सिर्फ एलुमिना पॉवडर तक सीमित नहीं रही – कोयले की आपूर्ति के लिए भी रेलवे फाटक और कोरबा की सड़कें घंटों बंद रहती हैं। कोरबा यार्ड से बालको और सीएसईबी की साइडिंग तक मालगाड़ियों का आवागमन पूरी तरह से बालको के हितों के अनुसार तय हो रहा है, चाहे इसके लिए शहर की पूरी यातायात व्यवस्था क्यों न ठप हो जाए।
सिर्फ आगे से इंजन – नियमों से खिलवाड़ !
जिन मालगाड़ियों से कोयला और एलुमिना पाउडर ढोया जाता है, उन्हें सिर्फ आगे से एक इंजन लगाकर ट्रांसपोर्ट नगर फाटक की ओर रवाना किया जा रहा है। यह जानते हुए भी कि वहाँ चढ़ाई के कारण पीछे से इंजन अनिवार्य है, बालको को जल्दी कोयला और एलुमिना मिल जाए, इस चक्कर में रोज़ नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं।
फाटक बंद, शहर जाम – बालको निर्लज्ज
हर बार जैसे ही बालको की कोई रैक ट्रांसपोर्ट नगर फाटक पार करती है, वहीं रुक जाती है। इसके बाद शहर और निहारिका के बीच का संपर्क पूरी तरह कट जाता है। एम्बुलेंस, मरीज, स्कूली बच्चे, ऑफिस कर्मचारी, हर कोई घंटों फँसा रहता है।
और बालको ? ना कोई जवाब, ना कोई अफ़सोस!
कोयला-एलुमिना की भूख में शहर की जान फँसी
कोरबा की जनता का सवाल साफ है – क्या बालको एक सामान्य उद्योग है या फिर ऐसा साम्राज्य बन चुका है जहाँ नियम, जनता और प्रशासन सब इसके पैरों में हैं ?
रेलवे के कुछ जिम्मेदार कर्मचारियों की चुप्पी और बार-बार की लापरवाही इस बात की तरफ इशारा करती है कि यह सब एक कॉर्पोरेट-सुपरवाइज्ड सिस्टम के तहत हो रहा है, जहां जनता की कीमत एक ट्रक एलुमिना से भी कम रह गई है।
प्रशासनिक मौन = मिलीभगत या मजबूरी ?
शहर के लोगों का आक्रोश अब प्रशासन की चुप्पी पर भी है। सवाल उठ रहे हैं –
- क्या जिला प्रशासन बालको के आगे नतमस्तक हो चुका है?
- क्यों नहीं होती इस अव्यवस्था पर कोई कार्रवाई ?
- क्या शहर की जनता को हर दिन ‘बालको एक्सप्रेस’ के नीचे रौंदना ज़रूरी है ?
बालको की विशेष छूट तत्काल बंद हो
जनता ने साफ मांग रखी है :
- बालको के कोयला और एलुमिना सप्लाई के लिए डबल लोको की व्यवस्था अनिवार्य की जाए
- हर रैक के लिए समय-सीमा निर्धारित हो, जिससे ट्रैफिक ठप न हो
- रेलवे और बालको के जिम्मेदार अफसरों की जवाबदेही तय हो
- और सबसे ज़रूरी – बालको को विशेषाधिकार नहीं, नियमों की चौखट में लाया जाए
कोरबा की जनता रेलगाड़ी से नहीं, बालको के अघोषित अत्याचार से कुचली जा रही है।