कोरबा, 22 सितंबर: डॉक्टरों को अक्सर भगवान का अवतार माना जाता है, लेकिन जब वही भगवान व्यापार में लिप्त हो जाए, तो परिणाम चिंताजनक हो सकते हैं। कोरबा में डॉक्टर विशाल राजपूत ने कुछ ऐसा ही किया है। उनके श्री हरि क्लिनिक एवं डायग्नोस्टिक सेंटर में बिना किसी योग्य पैथोलोजिस्ट की देखरेख के मरीजों के ब्लड सैंपल की रिपोर्ट तैयार की जाती थी। विशाल और उसकी पत्नी की कारस्तानियों की दास्तान हम आपको पहले ही बता चुके है।
हाल ही में हुए खुलासे से पता चला है कि रिपोर्ट में जिस डॉक्टर मृत्युंजय शराफ का डिजिटल सिग्नेचर होता था, वे खुद कोरबा में पांच स्थानों पर कथित रूप सेवाएं दिया करते हैं, जबकि बिलासपुर संभाग में विशाल के सहयोग से करीब 20 स्थानों पर फर्जी सेवाएं प्रदान की जा रही थीं। इस खुलासे के बाद, डॉक्टर मृत्युंजय ने विशाल समेत एक और पैथोलैब से इस्तीफा दे दिया है, जबकि अब भी 3 स्थानों पर बिना डॉक्टर के आये सिग्नेचर का उपयोग किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि उन जांच रिपोर्टों का क्या, जो मृत्युंजय के नाम से जारी हुई हैं? क्या वे सच हैं? क्या सीएमएचओ ने मशीनों के एक्यूरेसी की जांच कराई है।
अधिक गंभीरता से, सीएमएचओ डॉक्टर एस एन केशरी अब तक जांच क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या यह सिर्फ कुछ रुपयों की वजह से हो रहा है?
विशाल द्वारा लिखी गई प्रिस्क्रिप्शन को देख कर पता चलता है कि उनके द्वारा दी जाने वाली दवाएं सामान्य चिकित्सा में नहीं लिखी जातीं। कोरबा का कोई डॉक्टर उसकी लिखी पर्ची के आधार पर आगे न उपचार करता है न ही उनके उपचार के तरीकों को प्रोत्साहित करता है। कहा जाता है कि इन दवाओं का तत्काल प्रभाव तो होता है, लेकिन दीर्घकालिक परिणाम बेहद खतरनाक हो सकते हैं।
डॉक्टर विशाल के क्लिनिक में मिलने वाले इंजेक्शन बाजार में 10% से भी कम दाम पर मिलते हैं। मतलब, जिस इंजेक्शन को विशाल 2500 या 3500 रुपये में लगाते हैं, वही खुली बाजार में 250 से 300 रुपये में उपलब्ध है।
अधिकतर मरीजों को एक-दो इंजेक्शन से राहत नहीं मिलती; यहां की औसत संख्या तो 5 से 12 इंजेक्शन तक पहुंच जाती है।
इस पूरे मामले ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। क्या डॉक्टर विशाल की करतूतें आपके स्वास्थ्य को खतरे में डाल रही हैं? सावधान रहें!
क्योंकि सीएमएचओ डॉक्टर एसएन केशरी जिनको पूरे मामले में सीलबंद कार्रवाई कर एफआईआर दर्ज करानी चाहिए वो लगता है सिर्फ निजी स्वार्थ की पूर्ति कर रहे है।
पत्नी ने सीएमएचओ को दी भ्रामक जानकारी
विशाल की पत्नी ममता सिंह राजपूत सीएमएचओ कार्यालय को भ्रामक जानकारी देकर बच निकलना चाहती है। श्री हरि क्लिनिक एवं डायग्नोस्टिक सेंटर की संचालक डॉक्टर विशाल की पत्नी ममता सिंह राजपूत है। इन्होंने सीएमएचओ कार्यालय से केवल पैथोलैब/ डायग्नोस्टिक सेंटर का ही पंजीयन कराया है। क्लिनिक के लिए अलग से पंजीयन कार्रवाई नहीं की गई है, लेकिन नोटिस के जवाब में ममता राजपूत ने लिखित में दिया है कि विशाल उनके पति है जो उनके क्लिनिक में अपने कार्यालय समय के बाद बैठ प्रैक्टिस करते है। जबकि बिना पंजीयन क्लिनिक का संचालन करने वाली ममता राजपूत न केवल अवैध क्लिनिक चला रही है बल्कि यहां उसके क्लिनिक में बैठकर डॉक्टर विशाल अवैध तरीके से बिना जीएसटी जमा कराए अवैध दवा कारोबारी बने हुए है जबकि इसी बिल्डिंग में मकान मालिक ने अपनी वैध दवा दुकान खोल रखी है इनको यहां का स्थान भी इसी शर्त पर निःशुल्क दिया गया है कि वो यहां दवा नहीं बिक्री करेंगे लेकिन बावजूद जुबान को दरकिनार कर डॉक्टर विशाल सिर्फ व्यापार में लगे हुए है।
विशाल को नहीं है निजी क्लिनिक में पैरेक्टिस का अधिकार
डॉक्टर विशाल सिंह राजपूत रशिया से एमबीबीएस किये है, सरकारी मेडिकल ऑफिसर बनने के बाद सरकारी कोटे से उनके पीजी की पढ़ाई पूरी करा उनको एमडी बनवाया गया है। विशाल की सेवाएं संचालक स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत है उनको सिर्फ अपने घर ही प्रैक्टिस की अनुमति है लेकिन वो सुभाष चौक के पास स्थापित कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में गैर पंजीकृत क्लिनिक में बैठ अपनी दुकान चला रहे है इसके लिए बाकायदा बोर्ड भी निगम की सड़क को अतिक्रमित कर लगाया गया है।
अब डॉक्टर अरोरा के नाम का लिया जा रहा है सहारा
सीएमएचओ ने छोटे लालच में पड़ पहले श्रीमती ममता सिंह राजपूत को एक नोटिस दिया इसका जवाब भी उन्होंने ही अपने घर पर बैठ तैयार कराया। जो पैथोलोजिस्ट मृत्युंजय शर्मा खुद सीएमएचओ के पास कबूल कर चुके थे कि वो सेवाएं नहीं देते है पहले सिर्फ दोस्ती के नाते डिग्री दे दिए थे उनसे स्टाम्प में लिखवाया गया कि वो एक घंटे शाम में सेवाएं देते हैं जबकि कइयों दिन में जारी रिपोर्ट की कॉपी हमारे पास है। बाद में आहत डॉक्टर मृत्यंजय ने एक दिन बाद ही अपना इस्तीफा सीएमएचओ कार्यालय में जमा कर दिया, मतलब आप खुद समझ सकते है। अब श्रीमती ममता राजपूत ने एक आवेदन दिया है जिसमे 61 वर्षीय डॉक्टर अरोरा जो पैथोलॉजी में एमडी तो नहीं है लेकिन डिप्लोमाधारी है उनके कुछ घंटे सेवा देने की बात बताई गई है, लेकिन हम यक़ीन के साथ कह सकते है डॉक्टर अरोरा के डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग होगा। डॉक्टर अरोरा पहले से ही एक लैब में सेवा दे रहे है वहीं वो एक चैरिटेबल ट्रस्ट में निःशुल्क सेवा देने कुछ दिन में जाने वाले है ऐसे समझा जा सकता है कि वो श्री हरि क्लिनिक एवं डायग्नोस्टिक सेंटर कब आएंगे। डॉक्टर ने पहले अपने दोस्त के डिग्री और सिग्नेचर का उपयोग किया अब लग रहा है, अपने पिताजी के संबंधों का फायदा उठा डॉक्टर अरोरा के नाम का उपयोग होगा।