छत्तीसगढ़

कांग्रेसकाल समाप्त पर एनटीपीसी की मनमानी बदस्तूर जारी, ओवरलोड ट्रकों की दौड़ भी प्रशासन की सख्ती पर पड़ रही भारी

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कोरबा 20 फरवरी 2024। वैसे तो कांग्रेसकाल समाप्त हो चुका है, पर पूर्ववर्ती सरकार के दरबार में बनाई गई प्रथाओं को अपनी आदत बना चुके लोग व संस्थाएं अब भी उन्हें बदस्तूर जारी रखे हुए हैं। इन्हीं में एनटीपीसी की छत्रछाया और आश्रय में फल-फूल रहे राखड़ परिवहन के ठेकेदार भी हैं। कांग्रेस शासनकाल में नियम-कायदों को दरकिनार कर न केवल सारे शहर में घनी धुंध की तरह पांच साल तक राखड़ पसरा रहा, परिवहन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए भारी वाहन यहां वहां लोगों की आंखों में किरकिरी मचाते बेतरतीब दौड़ते रहे। उस दौर में पड़ी आदत को प्रथा मानकर आज भी मनमानी जारी है, जिस पर मौजूदा शासन-प्रशासन की सख्ती भी काट नहीं कर पा रही है। यही वजह है जो बेधड़क ऐश से सड़कों पर ऐश उड़ाते भारी वाहन दौड़ते देखे जा सकते हैं।


कलेक्टर व जिला दंडाधिकारी अजीत वसंत ने आते सबसे पहले ट्रैफिक और राखड़ परिवहन की बेतरतीब व्यवस्था में कसावट लाने की कवायद शुरू की। बीते दिनों कटघोरा एसडीएम की अगुआई में कार्रवाई करते हुए ऐसे भारी वाहनों को जब्त कर पुलिस के हवाले किया गया, जो प्रशासन के निर्देश को धत्ता बताते और सड़क पर राखड़ उड़ाते फर्राटे भर रहे थे। आधे-अधूरे तिरपाली के बीच इन ट्रकों के ऊपर से न केवल राखड़ उड़ता जा रहा था, बल्कि राखड़ डेम से राख परिवहन में लगे ओव्हर लोड वाहन डंप करने के निर्धारित व अधिकृत स्थल की बजाय जिले के बाहर जा रहे थे। बीते कुछ दिनों के भीतर ही हाइवे से ऐसे दो दर्जन वाहनों की धर पकड़ और अर्थदंड की कार्रवाई की जा चुकी है। राखड़ से भरे ओव्हर लोड वाहनों को जब्त कर थाने में खड़ा कराया गया है। बावजूद इसके न तो एनटीपीसी इस पर अंकुश लगाने में रूची ले रहा और न ही बेलगाम हो रहे राखड़ परिवहनकर्ताओं पर कोई नियंत्रण ही लग पा रहा है। ऐसे में स्पष्ट है कि कांग्रेस के शासनकाल में जो प्रथा शुरू की गई थी, उसका अनुसरण अब भी जारी है और वर्षों से पड़ी मनमानी की ये आदत इतनी आसानी से जाने वाली नहीं
एनटीपीसी अफसरों के सामने उठाव, फिर कैसे बदल जाता है डंपिंग डेस्टिनेशन
उल्लेखनीय होगा कि एनटीपीसी के राखड़ बांध से राख भरकर प्रतिदिन सैकड़ों वाहन डंपिंग के लिए अधिकृत स्थल के लिए रवाना हो रहे हैं, पर जब वे यातायात नियम तोड़ते पकड़े जाते हैं, तो इन वाहनों का डंपिंग रूट बदल चुका होता है। एनटीपीसी के अफसरों के सामने उठाव होता है, फिर डंपिंग डेस्टिनेशन कैसे बदल जाता है, यह सवाल उठना लाजमी है। ऐसी स्थिति में एक ओर ट्रांसपोर्टर से सवाल किया जाना चाहिए, उठाव का ठेका देने वाले संस्थानों को भी कटघरे में लाना जरूरी प्रतीत होता है, जिनकी शह पर राखड़ परिवहन में करोड़ों का ठेका लेकर मनमानी पर उतारु हो चुके ठेका कंपनियों पर भी समुचित शिकंजा कसा जा सके, जो इस तरह से सड़क से गुजरते दूसरों की जान से भी खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे।

भार जांचने के लिए कोई सिस्टम नहीं, चांदी काट रहे साइट इंचार्ज से लेकर ट्रांसपोर्टर

जानकारों के अनुसार ट्रक के डाले में अतिरिक्त विस्तार कर ओव्हरलोड राखड़ का परिवहन किया जा रहा है। निर्धारित भार वहन क्षमता से अतिरिक्त राखड़ लोड से सड़कों की भी स्थिति खराब हो रही है। तिरपाल ठीक तरह से ढंकी नहीं जाती, जिससे राखड़ उड़कर लोगों की आंख में जाते हैं और दुर्घटना का डर बढ़ जाता है। राखड़ बांध से राख लेकर निकलने वाले वाहनों की भार वहन क्षमता जांचने के लिए कोई सिस्टम नहीं है। इसका पूरा-पूरा फायदा साइट पर मौजूद इंचार्ज से लेकर संबंधित ट्रांसपोर्टर उठा रहे हैं। एनटीपीसी के अधिकारियों की मौजूदगी में सभी ओवर लोड वाहनों को राखड़ ले कर जाने की अनुमति दी जा रही है। जगह-जगह राख गिरने से पर्यावरण के साथ लोगों की सेहत स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

Markandey Mishra

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