कोण्डागांव । जिले के आकांक्षी ब्लॉक माकड़ी के ग्राम पंचायत बेलगाँव की 24 वर्षीय बुधनी सोरी की कहानी प्रेरणा से भरी है। यह कहानी बताती है कि संकल्प और सही उपचार से टीबी जैसी गंभीर बीमारी को भी हराया जा सकता है। बुधनी एक सामान्य ग्रामीण महिला हैं, जो अपने चाचा के परिवार के साथ धौड़ामल गांव में रहती हैं। उनकी दिनचर्या में घर के काम में परिवार का साथ देना शामिल था। लेकिन अचानक उनका जीवन तब बदल गया जब उन्हें लंबे समय तक खांसी, बुखार, भूख में कमी और कमजोरी महसूस होने लगी।
निदान और प्रारंभिक कठिनाइयां :
शुरुआत में बुधनी ने इसे साधारण बुखार समझा लेकिन जब उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो परिवार ने गांव के वैद्यराज से जड़ी-बूटी का इलाज कराना शुरू किया। जब यह उपचार भी असफल रहा तो परिवार ने बुधनी को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र माकड़ी ले जाने का निर्णय लिया। वहां की जांच में पता चला कि बुधनी को टीबी हो गया है। इस खबर ने पूरे परिवार को झकझोर दिया क्योंकि ग्रामीण इलाकों में टीबी को लेकर कई प्रकार के मिथक और डर व्याप्त है। बुधनी के लिए यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी कठिन समय था। बीमारी ने उनकी शारीरिक शक्ति को समाप्त कर दिया था और उनके लिए घर के कामों में सहयोग देना भी मुश्किल हो गया था।
उपचार की शुरुआत :
बुधनी का इलाज डॉट्स के तहत शुरू हुआ जो टीबी के उपचार का एक प्रभावी तरीका है। यह कार्यक्रम सुनिश्चित करता है कि रोगी को नियमित रूप से दवाइयां दी जाए और उनकी प्रगति पर नजर रखी जाए। शुरुआत में बुधनी को दवाइयों के कारण शरीर में खुजली, पेशाब का रंग पीला होना और मतली जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। स्वास्थ्यकर्मियों, पिरामल फाउंडेशन के सदस्यों और टीबी सुपरवाइजर ने बुधनी को समझाया कि यह प्रारंभिक दुष्प्रभाव होते हैं और जल्द ही ये समस्याएं ठीक हो जाएगी। उन्होंने बुधनी को बताया कि टीबी का इलाज लंबा होता है, लेकिन नियमित उपचार और सही देखभाल से यह पूरी तरह ठीक हो सकता है।
परिवार और समुदाय का सहयोग :
बुधनी की इस लड़ाई में उनके परिवार के साथ-साथ टीबी मितानिन, पिरामल फाउंडेशन के सदस्य और स्वास्थ्यकर्मी ने अहम भूमिका निभाई। ग्रामीण समाज में टीबी के प्रति फैली भ्रांतियों के बावजूद, बुधनी के परिवार ने पिरामल फाउंडेशन के टीबी जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से इस बीमारी के बारे में सही जानकारी प्राप्त की और बुधनी को मानसिक रूप से मजबूत बनाए रखा। परिवार ने सुनिश्चित किया कि वह समय पर अपनी दवाइयां ले और पोषण पर विशेष ध्यान दे।
गांव के स्वास्थ्यकर्मियों और मितानिनों ने बुधनी को साफ-सफाई का महत्व समझाया और सुनिश्चित किया कि उनका आहार पोषण से भरपूर हो। इस दौरान उन्हें प्रोटीन युक्त भोजन और पर्याप्त आराम की सलाह दी गई, ताकि उनका शरीर दवाइयों के असर को सह सके और टीबी से लड़ने में सक्षम हो सके।
संघर्ष और जीत :
बुधनी सोरी ने छह महीने तक नियमित दवाइयां ली और स्वास्थ्यकर्मियों के सभी निर्देशों का पालन किया। यह सफर उनके लिए आसान नहीं था, क्योंकि इस दौरान उन्हें कई बार शारीरिक और मानसिक थकान का सामना करना पड़ा। लेकिन बुधनी ने कभी हार नहीं मानी। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार के सहयोग ने उन्हें इस कठिन लड़ाई में मजबूती दी। धीरे-धीरे उनकी तबीयत में सुधार होने लगा, और अंततः उनकी टीबी की जांच रिपोर्ट निगेटिव आ गई। यह सुनकर न केवल बुधनी बल्कि उनका पूरा परिवार और स्वास्थ्यकर्मी बेहद खुश हो गए।
जीवन की एक नई शुरुआत :
बुधनी सोरी अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अपने सामान्य जीवन में लौट आई हैं। उनकी यह सफलता न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत है, बल्कि यह पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा बन गई है। अब बुधनी टीबी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए काम करना चाहती हैं और अपने गांव को इस बीमारी से मुक्त रखने का संकल्प लिया है। उनका मानना है कि सकारात्मक सोच और सही उपचार से किसी भी बीमारी को हराया जा सकता है। उनकी कहानी ग्रामीण क्षेत्रों में टीबी से लड़ रहे अन्य लोगों के लिए एक प्रेरक संदेश है कि यह बीमारी लाइलाज नहीं है समर्पण, अनुशासन और समर्थन से इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। बुधनी सोरी की इस सफलता की कहानी यह साबित करती है कि चाहे जितनी भी कठिनाइयां हो सही उपचार और सहयोग से जीवन को नई दिशा दी जा सकती है।