ये क्या मरीज सरकारी अस्पताल में तड़पते रहता है और डॉक्टर निजी अस्पतालों में कर रहे मौज …

कोरबा : अगर आपकी जेब मे थोड़ा भी पैसा होगा तो आप उपचार कराने शासकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल दुबारा नहीं जाएंगे। यहां की अव्यवस्था से हर कोई हलाकान है, लेकिन हुक्मरानों को अपने एसी चेम्बर से निकल बाहर झांकने की फुर्सत नहीं है कि कोई मुफ़लिस मरीज उनकी चौखट पर दम तोड़ रहा है। अब कल की ही बात है। अब कल की ही बात है मेडिकल कॉलेज अस्पताल में संदिग्ध डेंगू मरीज की उपचार में दौरान मौत के बाद परिजनों ने हंगामा कर दिया था। मौत के बाद उपचार कर रहे चिकित्सक डॉ वेदप्रकाश जो कि मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है और एमडी मेडिसिन है उन्होंने परिजनों को अमर्यादित बयान देते कहा था कि डेंगू के मरीज की मौत ही होती है। ये उस जिम्मेदार डॉक्टर का बयान है जिसके भरोसे 100 से अधिक जिंदगी हर रोज अस्पताल इस आस से पहुंचती है कि उनको बेहतर उपचार मिलेगा। इधर इस मामले के सामने आने के बाद पता लगा है कि डॉक्टर वेदप्रकाश शहर के एक निजी अस्पताल श्वेता नर्सिंग होम में अपनी काम करने पहुंचते है। जहां मेडिकल कॉलेज में ये डॉक्टर 5 रुपये में मरीज देखता है तो श्वेता नर्सिंग होम में 500 रुपये की फीस निर्धारित है। अब समझ सकते है वफादारी कहाँ में लिए ज्यादा होगी। इसी अस्पताल में मेडिकल कॉलेज के ही डॉक्टर शशिकांत भास्कर भी अपनी सेवाएं देते है वो भी ठीक सुबह 9 बजे नियम से जबकि इनको सुबह 8 से 2 मेडिकल कॉलेज अस्पताल में होना चाहिए इनकी शाम कोरबा हॉस्पिटल में गुजरती है जबकि दिन एक और निजी अस्पताल में ! स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव चंदन कुमार ने कल ही एक परिपत्र जारी करते 2011 के नियमों को मेडिकल कॉलेज के डीन को भेजा है कि सरकारी चिकित्सक को अपने घर में प्रैक्टिस की अनुमति होगी वो किसी निजी क्लिनिक या नर्सिंग होम में प्रैक्टिस किसी भी स्तर पर नहीं करेंगे। लेकिन डीन अविनाश मेश्राम को सिर्फ विश्राम चाहिए उनको इनसे क्या वास्ता आज तक रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 50 से ज्यादा जांच कमेटी बैठाई गई लेकिन किसी मे भी डीन डॉक्टर अविनाश मेश्राम और एमएस डॉक्टर गोपाल कंवर ने कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की है। इनके नज़रों के सामने एमडी मेडिसिन डॉक्टर विशाल राजपूत ने सुभाष चौक के करीब अपनी निजी क्लिनिक खोले हुए है। सरकारी सर्जन डॉक्टर पाणिग्रही शारदा विहार के करीब आयुष्मान अस्पताल संचालित कर रहे है। सरकारी डॉक्टर अनिल मिश्रा स्किन स्पेशलिस्ट एनकेएच हॉस्पिटल के ब्रांच क्लिनिक ADC में काम कर जेब भर रहे है। इनके अलावा दर्जन भर मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक सरकार से मोटी तनख्वाह जरूर लेते है लेकिन काम निजी करते है इससे मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उपचार कराने पहुंचने वाले मरीजों को समय पर चिकित्सक नहीं मिलते है और कई बार बेहतर उपचार के अभाव में उनकी मौत हो जाती है। इस मामले में शासकीय मेडिकल कॉलेज कोरबा के अधिष्ठाता डॉक्टर अविनाश मेश्राम को कार्रवाई हेतु लिखित शिकायत का इंतजार है वो कहते है जब तक लिखित शिकायत नहीं मिलेगी वो किसी तरह की कार्रवाई नहीं करेंगे। जबकि अस्पताल का निरीक्षण कर खुद वो देख सकते है कि उनके चिकित्सक अस्पताल में उपस्थित है या नहीं है। हद तो ये है कि निजी प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश चिकित्सक एनपीए याने नॉन प्रैक्टिस अलाउंस तक सरकार से लेते है जो कि सरकार के साथ धोखा है। इसके अलावा सीएमएचओ की सरपरस्ती में बिना नर्सिंग होम एक्ट 2013 के तहत लाइसेंस लिए अवैध अस्पतालों और क्लिनिक की भी लंबी फेहरिस्त है। इनके सुपरविजन में कार्य कर रहे चिकित्सक भी पाक साफ नहीं है कटघोरा सीएचसी से लेकर पीएचसी कोरबा के चिकित्सक सरकारी समय मे किस निजी क्लिनिक और अस्पताल में मिलेंगे ये पूरे शहर को पता है और पता इन जिम्मेदारों को भी है लेकिन कार्रवाई का अभाव जरूर कोई जरूरत पूरी करा रहा है।

Markandey Mishra, Editor

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *