हरेली का मिथक और यथार्थ…

सावन के महीने में जब बरसात हो रही होती है और चारों ओर हरियाली बिखरी होती है, तो छत्तीसगढ़ जैसे कृषि प्रधान प्रदेश के लिए यह दृश्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। गर्मी के बाद बरसात की बौछारों और खुशनुमा हरियाली का स्वागत करने को सब आतुर रहते हैं। सावन में हरेली के दौरान किसान खेती की प्रारंभिक प्रक्रियाएं पूरी कर फसल के लिए स्वयं को तैयार करते हैं, अपने खेतों, गाय-बैलों, और औजारों की पूजा करते हैं और हरियाली का उत्सव मनाते हैं।

हरेली और अंधविश्वास
हरेली के समय अमावस्या की रात को कुछ ग्रामीण अंचलों में लोग मन ही मन आशंकित रहते हैं। अमावस्या की रात चंद्रमा के न दिखने के कारण अंधेरी होती है, और बारिश, हवाओं, और बादलों के गरजने के कारण यह अंधेरा रहस्यमय बन जाता है। यह स्थिति विशेष रूप से अमावस्या की रात को अधिक भयावह हो जाती है। ग्रामीण इलाकों में हरेली अमावस्या की रात का अनजाना सा भय बच्चों, बड़ों, और पशुओं को नुकसान पहुंचने की आशंका उत्पन्न करता है। इस भय के चलते ग्रामीण बैगा के द्वार पर जाने को मजबूर हो जाते हैं और गांव बांधने की तैयारियां करते हैं।

अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र
हरेली की रात गांवों में लोग दरवाजे बंद कर लेते हैं और नीम की डंगलियां घरों में खोंस ली जाती हैं। गोबर से आकृतियां बनाई जाती हैं और कथित तंत्र-मंत्र से गांव के चारों कोनों को बांधा जाता है। जादू-टोने के आरोप में महिला प्रताड़ना की घटनाएं भी घटती हैं। पिछले 28 वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वासों और जादू-टोने के संदेह में महिला प्रताड़ना के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। इन अभियानों के दौरान अनेक प्रताड़ित महिलाओं से बातचीत हुई और उनके दुख सुने गए।

सच्चाई की तलाश
हरेली की रात को जब हमने विभिन्न गांवों में जाकर स्थिति का जायजा लिया, तो हमने पाया कि कथित जादू-टोने और तंत्र-मंत्र की सारी बातें असत्य सिद्ध हुईं। न ही कहीं कोई अनुष्ठान करती महिला मिली और न ही कोई डरावनी घटना हुई। खराब मौसम, तेज बारिश, और तेज हवाएं जरूर मिलीं, पर कोई रहस्यमय या डरावनी घटना नहीं हुई।

शिक्षा और स्वास्थ चेतना
अंचल में शिक्षा और स्वास्थ चेतना का अपेक्षित प्रचार-प्रसार न होने के कारण ही जादू-टोने और तंत्र-मंत्र के अंधविश्वास आज भी बरकरार हैं। बीमारियों को जादू-टोने के कारण माना जाता है और बैगा-गुनियां के पास जाने का विकल्प अपनाया जाता है। बैगा-गुनियां बीमारियों की झाड़-फूंक करके ठीक करने का प्रयास करते हैं, पर बीमार व्यक्ति के ठीक न होने पर सारा दोष किसी निर्दोष महिला पर डाल देते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और स्वच्छता
हरेली और अन्य अवसरों पर आयोजित सभाओं में हमने लोगों को बताया कि सावन में बरसात के कारण बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु, बैक्टीरिया, और वायरस तेजी से पनपते हैं। गांवों में गंदगी, गड्ढों में रुका हुआ पानी, नम वातावरण, संक्रमित पानी, और दूषित भोजन बीमारियां बढ़ाने में सहायक होते हैं। मच्छर और मक्खियां बीमारियां फैलाने के प्रमुख कारक हैं। बीमारियों और उनके जिम्मेदार कारकों पर नियंत्रण के लिए तंत्र-मंत्र की नहीं, बल्कि साफ-सफाई से रहने, उबला हुआ पानी पीने, और स्वच्छता व स्वास्थ्य के सरल नियमों का पालन करने की जरूरत है।

हरेली का मिथक और यथार्थ में भेद करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और अंधविश्वास को त्यागने से ही हम बीमारियों और अन्य समस्याओं से बच सकते हैं। हरेली का उत्सव हमें यह सिखाता है कि प्रकृति का सम्मान और उसका सही उपयोग कैसे किया जाए। स्वच्छता, स्वास्थ्य, और शिक्षा के प्रचार-प्रसार से ही हम अपने समाज को अंधविश्वास से मुक्त कर सकते हैं।

 

Markandey Mishra, Editor

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