दंतेवाड़ा । कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी व जिला पंचायत सीईओ कुमार बिश्वरंजन के निर्देशन में नियद नेल्लानार योजना के तहत चयनित दुर्गम्य ग्राम मूलेर के शाला जाने योग्य बच्चों को शिक्षा सुविधा दिलाने के विशेष प्रयास किए जा रहे है। क्योंकि यह पाया गया है कि जिले के इस अलग थलग ग्राम के अधिकांश छात्र ग्राम की भौगोलिक स्थिति और दूर्गम्यता के कारण अपने पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते है। ज्ञात हो कि ग्राम मूलेर विकासखंड कुआकोंडा ग्राम पंचायत नहाड़ी का आश्रित ग्राम है।
दंतेवाड़ा जिला के आखिरी छोर का यह ग्राम अन्य ग्रामों की अपेक्षा पहाड़ों और घनगोर जंगल बीच कुंएनुमा आकार में बसा हुआ है। जिसकी कुल जनसंख्या 524 है। इस ग्राम के तहत 7 पारा एवं टोले की बसाहट है। ग्राम के बीचों बीच में सदा जल प्रवाही नदी है जिसके कारण यह ग्राम जिले के ब्लॉक मुख्यालय के सड़क संपर्क से हमेशा कटा सा रहता है। यहां पहुंचने के लिए नहाड़ी से लगभग 15 किलोमीटर वनीय मार्ग है एवं दंतेवाड़ा के सीमावर्ती जिला के गादीरास ग्राम से बड़े सट्टी तक 5 किलोमीटर तक पैदल चलकर ही यहां पहुंचा जा सकता है। इस प्रकार इस दुर्गम वन ग्राम के सात पाराओं से संपर्क करने के लिए इस नदी को पार करना एक दुःसह कवायद साबित होता है।
इसे दृष्टिगत रखते हुए जिला प्रशासन द्वारा उक्त ग्राम को ’’नियद नेल्लानार’’ योजना का आरंभ किया गया है। जिससे इस ग्राम में अधोसंरचनात्मक विकास की पहल हो और यह ग्राम विकास की मुख्यधारा में आ सकें। इसके लिए ग्राम में समस्त विभाग जैसे आ0जा0क0वि0, जनपद पंचायत, स्वास्थ्य विभाग, महिला बाल विकास विभाग शिक्षा विभाग पी.एच.ई. विभाग के द्वारा सघन सर्वे कर इस ग्राम के लोगों को सभी शासकीय योजनाओं से लाभान्वित करने और बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराने के हर संभव प्रयास किये जा रहे है।
इस क्रम में अगर ग्राम के शैक्षणिक पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डाला जाये तो भौगोलिक परिस्थितियों के चलते ग्राम के अधिकांश छात्र अन्ततः शाला त्यागी हो जाते है। कहने को तो यहां एक प्राथमिक शाला लगभग 1980 के दशक से संचालित है तथा माध्यमिक शाला 2008 से मूलेर के नाम से पोटाली में संचालित है। परन्तु आगे की पढ़ाई के लिए ग्राम के छात्र छात्राओं के दृष्टिकोण से यह अपर्याप्त है। इस संबंध में जिला प्रशासन ने पहल करते हुए यहा के पढ़ने योग्य बालिकाओं को ब्लॉक मुख्यालय कुआकोंडा में संचालित कन्या आश्रम मैलावाड़ा में प्रवेश दिलाया है। साथ ही 13 बालकों को भी बालक आश्रम टिकनपाल में भर्ती कराया गया। इस प्रयास से दुर्गम ग्राम मूलेर के बालक बालिकाओं के लिए शिक्षा की राह सुगम हुई है।